गुरू वन्दना
हे मेरे गुरुदेव करूणा सिंधु करूणा कीजिये।
हूं अधम आधीन अशरण अब शरण में लीजिये।।
खा रहा गोते हूं में भव सिन्धु के मझधार में।
आसरा है दूसरा कोई न अब संसार में।। हे मेरे.....।।
मुझमें है जप तप न साधन और नहीं कुछ ज्ञान है।
निर्लज्जता है एक बाकी और सब अभिमान है।। हे मेरे.....।।
पाप बोझे से लदी नैया भंवर में आ रही।
नाथ दौडों अब बचाओ जल्द डूबी जा रही।। हे मेरे.....।।
आप भी यदि छोड़ देंगे फिर कहां जाऊंगा मैं।
जन्म दु:ख से नाव कैसे पार कर पाऊंगा मैं।। हे मेरे.....।।
सब जगह 'मंजुल' भटक कर ली शरण अब आपकी।
पार करना या न करना दोनों मर्जी आपकी।। हे मेरे.....।।
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